The idea behind this blog is to tag on to some original Urdu literary work that I have come across in the wake of my learning Urdu from School books, NCPUL reading material, Urdu newspapers and like. It is primarily for those who have lost sense of love and appreciation of its ornamental script and know only the Devnagari script.
جامن کا پیڑ
کرشن چندر
जामुन का
पेड़
कृष्ण चंदर
कृष्ण चंदर – 1914 से 1977 – उर्दू के उन चंद मशहूर अफसाना[1] निगारों में हैं जिनको
उनकी जिंदगी ही में शोहरत हासिल हुई। उन्होंने अफसानों के अलावा नॉवेल और ड्रामे
भी लिखे। इनके अंदाज़े-बयान शायराना है। इनके फन का बुनियादी मकसद समाज के मज़लूम[2] तब्कों[3] की हिमायत[4] और अवाम दोस्ती है। इस
मकसद के लिए वह कहीं तनज़[5] व मज़ाह, कहीं बेलाग
हकीकत निगारी और कहीं रुमानियत से काम लिए हैं। वह तरक्की पसंद तेहरीक[6] के नुमाईंदा अफसाना
निगार है। उनके अफसानों के कई मज़मुए शाए हो चुके हैं। जिन में अनदाता, हम वहशी[7] हैं, तलसिमे-खयाल, टूटे
तारे, नज़ारे और काला सूरज काबिले ज़िकर है। शिकस्त[8], मिट्टी के सनम और एक
गधे की सरगुज़िश्त उनके मशहूर नॉवेल हैं।
ज़ेल की कहानी दफतरशाही की सुस्त
रफतारी और गैर-इंसानी रवय्ये पर ज़बरदस्त चोट है। आम मशाहिदा[9] है कि दफतरशाही इंसानी
हमदर्दी को नज़र-अंदाज़ कर के सिर्फ पैचीदा[10] क्वानीन[11] की मेकानिकी पाबंदी पर
अमल पीरा होती है। इस कहानी में एक शख़्श की जान फोरी तोर पर बचाने के बजाए
सेक्रेटेरियट के चपरासी, क्लर्क, और सुप्रिंटंडंट दरख्त उठाने की ज़िम्मेदारी
महकमे की तलाश शुरू कर देते हैं। यह कारवाई मुखतलीफ मुहकमों, हत्ता[12] कि वज़ारते-ख़ार्जा[13] तक पहुँच जाता है।
फाईलों का चक्कर चलता रहता है लेकिन कोई इस ग़रीब की जान बचाने की फिकर नहीं करता
यहां तक कि वह दम तोड़ देता है।
कृष्ण चंदर की यह कहानी हमारे सरकारी अफसरों के गैर-इंसानी रवय्ये और
दफ्तरशाही पर बड़ा गहरा तनज़ है।
रात को बड़े ज़ोर का झक्कड़[14] चला। सेक्रेटेरियट के
लोन में जामन का एक दरख्त गिर पड़ा। सुबह जब माली ने देखा तो इसे मालूम पड़ा कि
दरख्त के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।
माली दोड़ा दोड़ा चपरासी के पास
गया। चपरासी दोड़ा दोड़ा क्लर्क के पास गया। क्लर्क दोड़ा दोड़ा सुपरिन्टेंडंट के
पास गया। सुपरिन्टेंडंट दोड़ा दोड़ा बाहर लॉन में आया। मिनिटों में गिरे हुए दरख्त
के नीचे दबे हुए आदमी के गिर्द[15] मजमाअ[16] एकट्ठा हो गया।
"बेचारा! जामुन
का पेड़ कितना फलदार था।" एक क्लर्क बोला।
"इस की जामुन कितनी रसिली होती थीं।" दूसरा क्लर्क बोला।
"मैं फलों के मोसम में झोली भरके ले जाता था। मेरे बच्चे इस
की जामुनें कितनी ख़ुशी से खाते थे।" तीसरे क्लर्क ने तक्रिबन आबदीदा[17] हो कर कहा।
"मगर यह आदमी?" माली ने
दबे हुए आदमी की तरफ इशारा किया।
"हां, यह आदमी" सुपरिन्टेंडंट सोच में पड़ गया।
"पता नहीं ज़िंदा है कि मर गया" एक चपराशी ने पूछा।
“मर गया होगा। इतना भारी तना जिनकी पीठ पर गीरे, वह
बच कैसे सकता है?” दूसरा चपराशी बोला।
“नहीं में जिंदा हूं। ” दबे
हुए आदमी ने बा-मुश्किल कराहते[18] हूए कहा।
“जिंदा
है?” एक क्लार्क ने हैरत से कहा।
“दरख्त
को हटा कर इसे निकाल लेना चाहिये।” माली ने मशवरा[19]]
दिया।
“मुश्किल
मालूम होता है।” एक
काहिल[20] और
मोटा चपराशी बोला। “दरख्त
का तना बहुत भारी और वज़नी है।”
“क्या
मुश्किल है?” माली बोला। “अगर
सुपरिंटेंडंट साहब हुकम दे तो अभी पंद्रा बीस माली, चपराशी और क्लर्क ज़ोर लगा कर
दरख्त के नीचे से दबे आदमी को निकाल सकते हैं। ”
“माली ठीक कहता है।”
बहुत से क्लर्क एक साथ बोल पड़े। “लगाओ
ज़ोर हम तयार हैं।”
एक दम बहुत से लोग दरख्त को काटने पर तयार हो गए।
“ठहरो!”,
सुपरिंटेंडंट बोला, “में
अंडर-सेक्रेटरी से मशवरा कर लूं। ”
सुपरिंटंडंट अंडर सेक्रेटरी के पास गया। अंडर सेक्रेटरी डेप्युट सेक्रेटरी के
पास गया। डेप्युटी सेक्रेटरी जॉइँट
सेक्रेटरी के पास गया। जॉइंट सेक्रेटरी चीफ सेक्रेटरी के पास गया। चीफ सेक्रेटरी
ने जॉइँट सेक्रेटरी से कुछ कहा। जॉइँट सेक्रेटरी ने डेप्युटी सेक्रेटरी से कहा।
डेप्युटी सेक्रेटरी ने अंडर सेक्रेटरी से कहा। फाईल चलती रही। इसी में आधा दिन
गुज़र गया।
दोपहर को खाने पर दबे हुए आदमी के गिर्द बहुत भीड़ हो गई थी। लोग तरह तरह की
बातें कर रहे थे। कुछ मन चले क्लर्कों ने मामले को अपने हाथ में लेना चाहा। वह
हकुमत के फेसले का इँतज़ार किये बगैर दरख्त को खूद से हटाने का तहय्या[21] कर रहे थे कि इतने में सुपरिंटेंडंट फाईल लिए भागा-भागा
आया, बोला – हम लोग खूद के इस दरख्त को यहाँ से हटा नहीं सकते। हम लोग महकमा तिजारत[22] से मुतालुक[23] हैं और यह दरख्त का मामला है जो महकमा-ए-ज़िराअत[24] की तहवील[25] में है। इस लिए मैं इस फाईल को अरजंट मार्क कर के मुहकमा-ए-ज़िराअत में भेज
रहा हूँ। वहाँ से जवाब आते ही इस को हटवा दिया जाएगा।
दूसरे दिन महकमा-ए-ज़िराअत से जवाब आया कि दरख्त हटवाने की ज़िम्मेदारी
महकमा-ए-तिजारत पर आईद[26] होती है।
यह जवाब पढ़कर महकमा-ए-तिजारत को गुस्सा आ गया। उन्हों ने फौरन लिखा कि पेड़ो
को हटवाने या न हटवाने की ज़िम्मेदारी महकमा-ए-ज़िराअत पर आईद होती है।
महकमा-ए-तिजारत का इस मामले से कोई तालुक नहीं है।
दूसरे दिन भी फाईल चलती रही। शाम को जवाब आ गया। “हम इस मआमले को
हॉरटीकलचरल डिपार्टमेंट के सपुर्द कर रहे है क्योंकि यह एक फलदार दरख्त का मामला
है और एग्रीकलचरल डिपार्टमेंट सिर्फ अनाज और खेती-बाड़ी के मामलों में फैसला करने
का मजाज़[27] है। जामुन का पेड़ एक फलदार पेड़ है इस लिये पेड़
हॉरटीकलचरल डिपार्टमेंट के दाईरा-ए-अखतियार[28] में आता है।“
रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया हालांकि लॉन के चारों तरफ
पुलिस का पहरा था कि कहीं लोग कानून को अपने हाथ में ले के दरख्त को खुद से हटवाने
की कोशीश न करें। मगर एक पुलिस कांस्टेबल को रहम आ गया और इसने माली को दबे हुए
आदमी को खाना खाने की इजाज़त दे दी।
माली ने दबे हुए आदमी से कहा, “तुम्हारी फाईल चल रही है। उम्मीद है कि कल तक फैसला हो
जाएगा।“
दबा हुआ आदमी कुछ न बोला।
माली ने पेड़ के तने को ग़ोर से देखकर कहा, हैरत गुज़री कि तना तुम्हारे
कुल्हे पर गिरी। अगर कमर पर गिरती रीढ़ की हड्डी टूट जाती।
दबा हुआ आदमी फिर भी कुछ न बोला।
माली ने फिर कहा, तुम्हारा यहाँ कोई वारिस हो तो मझे इस का अता-पता बताओ। मैं
इसे ख़बर देने की कोशिश करुंगा।
मैं लावारिस[29] हूँ। दबे हुए आदमी ने बड़ी मुश्किल से कहा।
माली अफसोस ज़ाहिर करता हुआ वहाँ से हट गया।
तिसरे दिन हा्र्टिकल्चरल डिपार्टमेंट से जवाब आ गया। बड़ा-कड़ा जवाब था और
तनज़-आमेज़[30]। हा्र्टिकल्चरल डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी अदबी मिज़ाज़ का
आदमी मालूम होता था। इसने लिखा था: "हैरत है, इस समय जब 'दरख्त उगाओ' इसकीम बड़े पैमाने पर चल रहे हैं, हमारे मुल्क में ऐसे सरकारी
अफसर मोजुद हैं जो दरख्त काटने का मशवरा देतें हैं, वह भी एक फलदार दरख्त को! और फिर जामुन के दरख्त को!! जिस की फल अवाम बड़ी रघबत[31] से खाते हैं!!! हमारा महकमा किसी हालत में इस फलदार दरख्त को काटने की इज़ाजत नहीं दे सकता।"
“अब क्या किया जाय?“ एक मनचले ने कहा। “अगर दरख्त काटा नहीं जा सकता
तो इस आदमी को काट कर निकाल लिया जाए! यह देखिये, इसी आदमी ने इशारे से बताया। अगर इस आदमी को
बीच में से यानी धड के मकाम से काटा जाय तो आधा आदमी इधर से नीकल आयेगा और आधा
आदमी उधर से बाहर आ जायेगा और दरख्त वहीं का वहीं रहेगा।“
“मगर इस तरह से
तो मैं मर जाउँगा!” दबे हुए आदमी एहतजाज[32] किया।
"यह भी
ठीक कहता है।" एक क्लर्क बोला।
आदमी को काटने
वाली तजवीज़[33] पेश
करने वाले ने पर-ज़ोर एहतजाज किया, "आप
जानते नहीं हैं। आजकल प्लास्टीक सरजरी के ज़रीये धड के मुकाम पर इस आदमी को फिर से
जोड़ा जा सकता है।"
अब फाईल को
मेडिकल डिपार्टमेंट में भेज दीया गया। मेडिकल डिपार्टमेंट ने फौरन इस पर एकशन लिया
और जिस दिन फाईल इस महकमे का सब से काबिल प्लास्टीक सर्जन तहकिकात के लिये भेज
दिया। सर्जन ने दबे हुए आदमी को अच्छी तरह
टटोल कर, इस की सेहत देखकर, खुन का दबाओ, सांस की आमदो-रफत[34], दिल
और फेफड़ों जांच कर के रिपोर्ट भेज दी कि, "इस आदमी
का प्लास्टिक ऑपरेशन तो हो सकता है, और ऑपरेशन कामयाब हो जाएगा, मगर आदमी मर
जाएगा।"
लिहाज़ा यह
तजवीज़ भी रद कर दी गई।
रात को माली ने
दबे हुए आदमी के मुंह में खिचड़ी के लकमे[35] डालते
हुए इसे बताया, “अब मामला उपर चला गया है। सुना है कि सेक्रेटेरियट
के सारे सेक्रेटेरियों की मिटिंग होगी। इसमें तुम्हारा केस रखा जाएगा। उम्मीद है
सब काम ठीक हो
जाएगा। “
दबा हुआ आदमी एक
आह भर कर आहिस्ते से बोला - “हमने
माना कि तग़ाफुल[36] न
करोगे लेकिन खाक हो जाएँगे हम, तुमको ख़बर होने तक।“
मालीने अचंभे से
मुंह में उंगली दबाई। हैरत से बोला, “क्या तुम शायर
हो?”
दबे हुए आदमी ने
आहिस्ते से सर हिला दिया।
दूसरे दिन माली
ने चपराशी को बताया। चपरासी ने क्लर्क को और क्लर्क ने हेड-क्लर्क को। थोड़े ही अरसे में
सेक्रेटेरियट में यह अफवा फैल गई कि दबा हुआ आदमी शायर है। बस फिर क्या था। लोक जोक-दर-जोक[37] शायर को देखने के लिए आने लगे। इस की ख़बर शहर में फैल गई।
और शाम तक मुहल्ले मुहल्ले से शायर जमाअ होना शरू हो गए। सेक्रेटेरियट के लॉन भांत
भांत के शायरों से भर गया। सेक्रेटेरियट
के कई क्लर्क और अंडर-सेक्रेटरी तक, जिन्हें अदब और शायर से लगाओ था, रुक गए. कुछ शायर दबे हुए आदमी को अपनी ग़ज़लें और नज़में
सुनाने लगे. कई क्लर्क इससे अपनी ग़ज़लों पर इसला[38] लेने के लिए मुसिर[39] होने लगे।
जब यह पता चला कि दबा हुआ आदमी शायर है तो सेक्रेटेरियट की सब-कमिटी ने फैसना
किया कि चोंकि दबा हुआ आदमी एक शायर है लिहाज़ा इस फाईल का तालुक न एग्रिकलचरल
डिपार्टमेंट से है, न हार्टीकलचरल डिपार्टमेंट से बल्कि सिर्फ कलचरल डिपार्टमेंट
से है। पहले कलचरल डिपार्टमेंट से इसतदा[40] की गई कि जल्द से जल्द इस मामले का फैसला कर के बदनसीब
शायर को इस शजरे-सायादार[41] से रिहाई दिलाई जाय।
फाईल कलचरल डिपार्टमेंट के मुख़तलीफ शुआबों[42] से गुज़रती हुई अदबी अकाडमी के सेक्रेटरी के पास पहुँची।
बेचारा सेक्रेटरी इसी वकत अपनी गाड़ी में सवार हो कर सेक्रेटेरियत पहुँचा और दबे
हुए आलमी से इँटरव्यू लेने लगा।
“तुम शायर हो?” इसने पूछा।
“जी हाँ।” दबे हुए आदमी ने जवाब दीया।
“क्या तख़ल्लुस करते हो?”
“अवस”
“अवस!” सेक्रेटरी ज़ोर से चिंखा। “क्या तुम वही हो जिस का मजमुआ-ए-कलाम-ए-अवस के फुल हाल ही में शाए हुआ है?”
दबे हुए शायर ने इसबात[43] में सर हिलाया।
“क्या तुम हमारी अकाडमी के मेम्बर हो?” सेक्रेटरी ने
पूछा।
“नहीं”
"हैरत है !". सेक्रेटरी ज़ोर से चींखा। "इतना बड़ा शायर ! अवस के फूल का मुसन्निफ !! और हमारी अकाडमी का मेम्बर नहीं है! ऊफ, ऊफ कैसी गल्ती हो गई हम
से ! कितना बड़ा शायर और कैसे गोशिआ[44]-ए-गुमनामी में दबा पड़ा है!"
“गोशिया-ए-गुमनामी में नहीं बल्कि एक दरख्त के नीचे दबा हुआ... बराहे-करम[45]
मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालीये।”
“अभी बंदोबस्त करता हूँ।” सेक्रेटरी फौरन बोला और फौरन जा कर
इसने अपने महकमे में रिपोर्ट पेश की।
दूसरे दिन सेक्रेटरी भागा भागा शायर के पास आया और बोला,
“मुबारक
हो, मिठाई खिलाओ, हमारी सरकारी अकाडमी ने तम्हे अपनी मर्कज़ी कमिटी का मेम्बर चुन
लिया है। यह लो परवाना-ए-इंतखाब!”
“मैं अभी ज़िंदा
हूँ।” शायर रुक रुक कर बोला। “मुझे ज़िन्दा रखो।”
“मुसीबत यह है,” सरकारी अकाडमी का सेक्रेटरी हाथ मलते हुए बोला, “हमारा महकमा सिर्फ कल्चर से मुतालूक है। इसके लिए हमने 'फॉरेस्ट डिपार्टमेंट' को लिख दिया है। 'अर्जंट' लिखा है।”
शाम को माली ने आ कर दबे हुए
आदमी को बताया कि कल फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के आदमी आकर इस दरख्त को काट देंगे और
तुम्हारी जान बच जाएगी।
माली बहुत खुश था कि गो[52] दबे हुए आदमी की सेहत जवाब दे रही थी मगर वह किसी न किसी
तरह अपनी ज़िंदगी के लिए लड़े जा रहा है। कल तक.... सुबह तक.... किसी न किसी तरह
इसे ज़िन्दा रहना है।
दूसरे दिन जब फॉरेस्ट
डिपार्टमेंट के आदमी आरी कुल्हाड़ी ले कर पहुँचे तो इनको दरख्त काटने से रोक दिया
गया। मालुम यह हुआ कि मुहकमा-ए-ख़ारजा से हुकम आया कि इस दरख्त को न काटा जाय, वजे
यह थी कर इस दरख्त को दस साल पहले हकुमत पिटोनिया के वज़िरे-आज़म ने सेक्रेटेरियट
के लॉन में लगाया था। अब यह दरख्त अगर काटा गया तो इस उमर का शदीद अंदेशा था कि
हकुमते-पिटोनिया से हमारे तालुकात हमेशा के लिए बिगड़ जाएगे।
“मगर एक आदमी की
जान का सवाल है” एक क्लर्क गुस्से
से चिल्लाया।
“दूसरी तरफ दो
हुकमतों के तालुकात का सवाल है।” दूसरे क्लर्क ने पहले क्लर्क को समझाया। “और यह भी तो समझो कि हकुमत पिटोनिया हमारी हकुमत को कितनी
इमदाद देती है। क्या हम इन की दोस्ती की खातिर एक आदमी की ज़िदगी को भी कुरबन नहीं
कर सकतें?”
“शायर को मर जाना
चाहिए।”
“बिलाशुबा[53]।”
अंडर सेक्रेटरी ने सपरिंटेंडंट
को बताया। “आज सुबह वज़िरे-आज़म दौरे से वापस आ गए हैं। आज चार बजे
महकमा-ए-ख़ार्जा इस दरख्त की फाईल उन के सामने पेश करेगा। जो वह फैसला देंगे वही
सब को मंज़ुर होगा।”
शाम पांच बजे खुद
सुप्रिंटेंडंट शायर की फाईल ले कर उस के पास आया। “सुनते हो?” आते ही खुशी से फाईल हिलाते हुए चिल्लाया, “वज़िरे-अज़म[54] ने दरख्त को काटने का हुकम दे दिया है और इस वाकिए की सारी
बेनुल-अक्वामी[55] ज़िम्मेदारी अपने सर पर ले ली है। कल वह दरख्त काट दिया
जाएगा और तुम इस मुसिबत से छुटकारा हासिल कर लोगे। ”
“सुनते हो? आज तुम्हारी फाईल मुकम्मल हो गई!“. सुप्रिंटंडंट ने शायर के बाजू को हिला कर कहा। मगर शायर का
हाथ सर्द था। आँखों की पतलियाँ बेजान थी और च्योंटियों की एक लम्बी कतार इस के मुह
में जा ही थी।
उसकी ज़िंदगी की फाईल भी
मुकम्मल हो चुकी थी।
माअनी व इशारात
सेक्रेटेरियट – मातमदी,
सचिवालय
हार्टिकलचरल डिपार्टमेंट –
बाघियानी से मतालुक महकमा
एग्रीकलचरल डिपार्टमेंट –
महकमा ज़िराअत
तशन्नुज – ऐंठन
मश्क व मुतालिया
(1) सेक्रेटेरियट के लॉन में क्या हादशा
पेश आया?
(2) सेक्रेटेरियट के सुपरिंटेंडंट तक इस
हादसे की खबर किस तरह पहुँची?
(3) क्लर्कों को किस बात का दुख हुआ था?
(4) माली ने क्या मष्वरा दीया?
(5) सुपरिंटेंडंट ने पेड़ तले दबे हुए
आदमी को निकाल ने से क्यों मनाअ किया?
(6) मरकमे-ज़िराअत और मरकमा-ए-तिजारत में
किस बात पर इखतलाफ-ए-राय हुआ?
(7) हार्टितलचरल डिपार्टमेंट से क्या जवाब
आया?
(8) पेड़ तले दबे हुए आदमी ने किस बात पर
अहतजाज किया?
(1) दरख्त के तले दबे हुए आदमी की
प्लास्टीक सरजरी की तजवीज़ क्यों पेश की गई
(2) दबे हुए आदमी के मुतालुक क्या ख़बर
फैल गई और इस का नतीजा क्या निकला
(3) महकमा-ए-ख़ार्जा ने दरख्त काटने से
क्यों रोक दिया था
कृष्ण चंदर ने इस कहानी में
दफ्तरशाही पर किस तरह चोट की है
बः मंदरजा ज़ेल बयानात की
तशरीह कीजिए –
(1) इस फाईल का तालुक न एग्रीकल्चरल
डिपार्टमेंट से है, न हॉर्टिकलचरल डिपार्टमेंट से बल्कि सिर्फ कलचरल डिपार्टमेंट
से है।
(2) इसकी ज़िंदगी की फाईल भी मुकम्मल हो
चुकी थी।
जः (1) जुमलों में इस्तमाल
कीजिए –
जोक दर जोक, कानून को अपने हाथ में लेना, जवाब देना।
(3) ज़ेल में से मरक्कब जुम्ले
पहेचानियेः-
अ.
इसकी ख़बर शहर में फैल गई और शाम तक मुहले मुहले से शायर जमाअ होने शरू हो गए।
ब. क्या हम
उन की दोस्ती की खातिर एक आदमी को भी कुर्बान नहीं कर सकते?
ज. दबे हुए
आदमी की सहत जवाब दे रही थी मगर वह किसी न किस तरह अपनी ज़िंदगी के लिए लड़े जा
रहा था।
द. तल यह
दरख्त काट दिया जाएगा और तुम इस मुसिबत से छुटकारा हासिल कर लोगे।
ह. हमारा
महकमा किसी हालत में इस फलदार दरख्त को काटने की इजाज़त नहीं दे सकता।
The above is
transliteration into Devnagari, from the original work in Persian script of
Urdu, with meanings of selected words as footnotes, of lesson number 5 of an
erstwhile Urdu text book of Standard 10 of Schools represented by Maharashtra
State Board of Secondary and Higher Secondary Education, Poona 411- 010.
[2] मज़लूम-Adj. oppressed
مظلوم
[3] तबक़ों- parts طبقون
[10] पेचीदा- adj. complicated, twisted پیچیدہ
[11] क़्वानीन- pl. laws, rules قوانین
[39] مصر मुसिर - persistent
[47] तशन्नुज - Convulsion, spasm, cramp تشنّج
[48] करब - Grief, pain, vexation, affliction کرب
[49] मुबतला - Involved, fallen, engagedمبتلا
[50] वज़ीफ़ा - Pension salary وظیفہ
[51] दरख़्वास्त- Application درخواست
[52] गो - Saying, telling گو
[53] बिलाशुबा - Without doubt بلاشبا
[54] वज़ीरे आज़म - Prime Ministerوزیراعظم
[55] बेनुल अक्वामी- Foreign affairs بین الاقوامی
[57] दुव्वम - Secondدوّم
[58] सुव्वम- Thirdسوّم
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