The idea behind this blog is to tag on to some original Urdu literary work that I have come across in the wake of my learning Urdu from School books, NCPUL reading material, Urdu new papers and like. It is primarily for those who have lost sense of love and appreciation of its ornamental script and know only the Devnagari script.
लालु यादव
के नौ रतन
“मम्मी डेडी आई लव यु, सी दी बेबी डाईंग फॉर यु।”
साबीक वज़रे-आला[1]
लालू प्रसाद यादव और मौजुदा वज़ीरे-आला रबड़ी देवी की सब से छोटी विजयालक्ष्मी गा
रही है। जब कभी वह नज़म-गीत गाते गाते रुक जाती थी, बड़ी बहन रोहनी इसे लकमा देती
है। “विजयालक्ष्मी
अच्छी लड़की है।” रोहनी कहती है। “है ना विजया?”
विजयालक्ष्मी पहली जमाअत[2]
में है और तमाम अफ्रादे-खाना[3]
इसे बेहद चाहते है। “हेलो”, मैंने उसके जानीब बढ़ते हुए कहा। “क्या
वह नज़म तुम हमें भी सुनाओगी?” विजयालक्ष्मी
मुझे करीब आते देखकर पीछे होने लगी। इतने में रोहनी की आवाज़ आई – “वह बहुत शरमिली है” रोहनी
ने कहा और बच्चों के साथ बालकनी के जानीब बढ़ गया।
बालकनी से जब मैंने नीचे की तरफ नज़र डाली तो देखता हूँ
कि यादव खानदान के चार बच्चे माली, चपराशियों, और मुहाफिज़ों[4]
के साथ क्रिकेट खेल रहे हैं। रोहनी उनको बुलाती है लेकिन रोहनी के आवाज़ पर उनके
चेहरे मलूल[5]
हो जाते हैं। मैं उनसे पुछता हूँ – “क्या
आप लोग खेल खेलकरने के बाद आयेंगे?” बच्चे मेरी
बात का जवाब नहीं देते हैं। लेकिन रोहनी बातें करने लगती है। उसने मेडिकल में
दाखला का टेस्ट दिया है और इम्तिहान के नतिजा का इंतज़ार कर रही है। इस दौरान मैं
देखता हूँ कि क्रिकेट की टीम कमरे में दाखल हो रही है। बच्चे बेतरबी से जूते उतार
कर इधर उधर डाल देते हैं, बल्कि फेंक देते हैं और मेरे करीब आ जाते हैं। तरून दूसरी जमाअत में है। उसे क्रिकेट दिवांगी
की हद तक अज़ीज़ है कि वह टेलीवीज़न पर पेश किया जाने वाला हर मेच देखता है। “जब
सहारा कप खेला जा रहा था, मैं रात रात भर रहता।”
लालू यादव के घर में बच्चों की वजह से बहार रहती है।
तेजप्रताप जो तिसरी जमाअत का तालीबे-इल्म है, क्रदरे चिड़चिड़ा और दुबला पतला
लड़का है जिस के आगे के दांत उखड़ गये है। उनकी शरारतों से पुरा घर परेशान रहेता
है। जब वह दुसरों को सताने के लिए आता है तो सुरते-हाल यह होती है कि पूरा घर एक
तरफ और तेजप्रताप एक तरफ। उसे फुटबोल पसंद है। “क्रिकेट
अच्छा नहीं लगता क्योंकि मैं इसमे जलदी आऊट हो जाता हूँ। लेकिन उस में कोई बुराई
नहीं। टेंडुलकर भी तो कभी कभी आऊट हो जाते हैं।” इस बच्चे
को हवाई जहाज़ अच्छे लगते है, लिहाज़ा इसने एअर फोर्स जोईन करने का फैसला किया है।
“मैं
हवाई जहाज़ उडाना चाहता हूँ। ” तेजप्रताप उथड़े हुए दांतों को छुपाते
हुए कहता है।
ग्यारा अफ्राद का यह खानदान पहले मंज़िला पर रहते हैं
जबकि ग्रौंड फ्लोर पर ऑफिस है जहाँ दिन भर काफी शोर होता है। घर में बच्चों की
नानी से भी मुलाकात होती है जो कुछ दिनों के लिए आई थी लेकिन अब काफी दिन रुक गई
हैं। पुरा का पुरा घर निहायत सलिका के सजा हुआ है। दिवान खाने की खुरशियों को सिया
और तिलाई[6]
रंगो में देखा जा सकता है. सोफा का असतर भी खुबसुरत डिज़ाईन से मुजै़न[7]
है। फर्श मारबल का है और कमरे के एक गौशे में गनेश की कई मुर्तिओं रखी गई हैं धात,
लकड़ी और शीशे की बनी हुई हैं। टेरा कोटा
के गोलदान लालु यादव की दो बेटियों ने अच्छे नक्शो निगार किये हैं। यह दो बेटियां मीसा और चंदा है। मीसा पटना मेडिकल कोलेज की तालिबे-इल्म है जबकि
चंदा अजमेर के मायो कोलेज में दसवी पढ़ रही है। ड्राइंग रुम की एक दीवार पर सतिश
गुजराल की एक पेंटिंग है। मुझे बताया जाता
है कि हाल ही में जब रबड़ी देवी वज़िरे अज़म इंदर कुमार गुजराल से मिली थी तब
इन्हों ने अपने भाई की बनाई हुई यह पैंटिंग उन्हे तोफे में दी थी।
रोहनी मेरे करीब आकर बैठ जाती है और बताने लगती है कि
राष्ट्रपती भवन में सदरे जमहुरिया आर के नारायन और उनकी अहलिया[8]
से मुलाकात कितनी यादगार साबीत हुई। “नारायन
अंकल बहुत अच्छे हैं।” रोहनी कहती है। “उनकी वाईफ
ने हमें राष्ट्रपती भवन के बाग़ात की सैर
कराई और ढेर सारे स्नेक्स खिलाए।”
लालू यादव की बेटियों को अच्छे अच्छे कपड़े पहनने के
अलावा पैंटिंग, एम्ब्रोयडरी, और खाने पीने से दिलचश्पी है. मीसा और रोहनी खास तोर
पर बताती है कि उन्हे फेशन डिज़ाइनिंग का बहुत शोक है। “हमारे
कपड़े अज़ीम टेलर्स के यहाँ सिलते हैं लेकिन डिज़ाईन और एम्ब्रोयडरी हमी लोग करते
हैं।” यह
बात मुझे रोहनी बताती है जो फिलवक़्त[9]
17 साल की है और डॉक्टर बनना चाहती है।
उनकी ख़्वाहिश है कि अपने वालीद के तामीर कराए हुए नेज़
उसकी दादी से मनसुब एक ऐसे असपटल में काम करे जो के आबाई गाओं में हो। “मीसा
और में चाहते हैं कि देहातों जाकर गरीबों के लिए काम करें।“
शादी?? शादी के
बारे में जब मेने रोहनी से पूछा तो कबनवे लगी – “इतनी
जलदी मैं अभी बहुत छोटी हूँ।” इसके बकुल वक़्त आने पर मैं ज़रुर
शादी करुंगा लेकिन अपनी पसंद की नहीं बल्कि मम्मी-डेडी की पसंद से क्यों कि वह
बहतर इंतख़ाब कर सकेंगे।
हर चंद के इस घर में कई बावरची हैं अच्छे से अच्छा खाना
पका सकते हैं लेकिन लड़कियों को पकाने का बहुत शोक है क्योंकि उन से वालिद का भी
यही शोक रहा है। ऱोहनी नॉनवेज अच्छा पका लेती है जबकि मीसा को चीनी पकवान से
दिलचस्पी है। “माँ के चीफ मिनीस्टर बनने से कबल[10]
मेरा मामूल था कि मैं खाना पकाने में
मम्मी की मदद किया करती थी। उन के मैंने बहुत कुछ सीखा लेकिन... उनकी बात ही कुछ
और है।”
लालू यादव की एक और बेटी रागिनी है जो अच्छे अच्छे और
नये नये पकवान की तय्यारी के लिए टेलीवीज़न
प्रोग्राम “खाना खजाना” ज़रूर देखती है। वैसे भी टेलेविज़न
इन सब की पसंद है। “बनेगी अपनी बात” ... और ...“अमानत” इनकी
पसंदिदा सीरियल है लेकिन इन लड़कियों को शिकायत है कि इनके यहाँ डीश एंटेना नहीं
है. केबल कनेक्शन है लेकिन बार बार बीजली जाने की वजे से केबल पर प्रोग्राम देखने में लुफ्त नहीं आता।
फिल्मे देखने का शोक सभी को है। मीसा को अरविंद स्वामी
और मधुबाला की फिल्मे अच्छी लगती है। रोहनी को सलमान खान, चंदरपुद सिंग, करीष्मा
कपूर और मनीषा कोइराला पसंद है और रागीनी को अकषय खन्ना और मनीषा की फिल्मे अज़ीज़
है। उन्हे एक शिकायत है कि वह सेक्योरिटी के मसले की वजे से थ्येटर में जा कर
फिल्में नहीं देख सकती। लालू की एक और बेटी रोहनी के बकौल –
हम ने अब तक तीन फिल्मे थियेटर में देखी हैं –
हम आपके है कैन....
लालू यादव के लड़कियों को अपनी “वी.आई.पी” हैसियत
का खुब एहसास है। जब भी वह स्कूल में होते है, टीचर क्लास के बच्चे उनके साथ बहुत
अच्छी तरह पेश आते हैं क्योंकि सबको मालूम है कि वह वज़िरे-आला के बेटे बेटियां
हैं। जिस वक़्त वह क्लास रूम में होते है, बॉडीगार्ड बाहर खड़ा रहता है और जब
स्कूल का वक़्त खतम होता जाता है तो बच्चे सेक्योरिटी गार्ड के साथ घर लोटते हैं।
शॉपिंग के लिए जब लालू यादव की बड़ी लड़कियां बाज़ार जाती हैं तब सादे कपड़े में
मलबुस सेक्योरिटी गार्ड को साथ ले जाना पसंद करती हैं ताकि आवाम की तवज्जु[11]
का मरकज़[12]
न बने।
जब से रबड़ी देवी वज़िरे-आला बनी है लालू यादव की बेटियों को सियासत से खसुसी
दिलच्शपी हो गयी है। अब वह अहम रोज़नामे पड़ती है, सियासी ख़बरों पर तबसरा करती है
और टेलिविज़न की न्यूज़ बुलिटिन ज़रूर देखती है। जहां तक सियासत में शामिल होने का
सवाल है, इन बच्चों का जवाब नकी में सामने आता है। “क्या यह
ज़रुरी है कि बच्चे भी वही पेशा अखतियार करें जो इनके वालिदें का है?” यह
सवाल वह बड़ी एतमाद से करते हैं। बड़े बच्चों का कहना है कि इन्होंने अपने प्रोफेशन
का इंतख़ाब कर लिया है।
रोहिनी और रागिनी को लालू यादव के जेल से रिहा होने का
शिदत के साथ इंतज़ार है। “हम चाहते हैं कि डेडी दिवाली तक घर आ
जाए। हर साल वह बड़े जोश खरोश के साथ दिवाली मनाते हैं। इन की मौजुदगी में हम दिये
जलाते हैं। घर को सजाते हैं और पुजा करते हैं। “रोहिनी और रागिनी को दिवाली का इस लिए भी इंतज़ार है
कि इस दौरान छुटि्टयों कि वजह से हेमा और चंदा भी घर आ जाती हैं।
लड़कों के मुकाबले में ख़ास तोर पर लड़कियों को रबड़ी
देवी के वज़िरे-आला बन जाने के बाद इतना बड़ा घर खाली खाली सा लगता है लेकिन हर एक
ने अपनी जिम्मेदारी संभाल ली है। बड़ी लड़कियों घर की देखभाल भी करती हैं और छोटी
बहनो का खयाल भी रखती हैं। “जब मम्मी की बहुत ज़्यादा याद आती है
को हम उनसे फोन पर बातें करने लगते हैं।”
माँ वज़िरे-आला के हेसियत से अपने चेंबर में और बाप जेल
में। देखा जाए तो लालू यादव के यह “नौ रतन” खुश नहीं
है। इसके कबल जब मैने लालू यादव से उसके इस घर पर मुलाकात की थी तब घर में बड़ी
रोनक़ थी। उसी वक़्त रबड़ी देवी ने बताया था कि मीसा का नाम जय प्रकाश नारायण ने
रखा था क्यों कि जिस वक़्त वह पैदा हुई, लालू यादव “MISA” के तहत जेल में थे।