शनिवार, 22 नवंबर 2014

जवाहरलाल नेहरू (श्रृद्धांजलि)

  جواہر لال نہرو

   आख़िर वही हुआ जिसका धड़का लगा हुआ था। जवाहरलाल नेहरू की ज़िंदगी का चिराग गुल हो गया। सिर्फ उनकी ज़िंदगी का चिराग गुल नहीं हुआ, हिंदुस्तान में अंधेरा हो गया। एशिया की रोशनी जाती रही. दुनिया पर ग़म के बादल छा गये। हिंदुस्तान का यह मेहबूब रहनुमा सिर्फ़ हिंदुस्तान रहनुमा नहीं था, वह सारी दुनिया का रहनुमा था. उसने महात्मा गांधी की रहनुमाई में सिर्फ़ हिंदुस्तान को आज़ाद नहीं कराया, कितने ही गुलाम मुल्कों में आज़ादी की तड़प हैदा की। उसने हिंदुस्तान की आज़ादी की लडाई इस तरह कामियाबी से लड़ी कि दोस्त दुश्मन सब के सर एहतराम[1] में झुक गया। वह हिंदुस्तानी था, वह मशरिकी[2] था, वह मग़रिबी[3] था, वह आलमी[4] ज़हन[5] रखता था। उसमें मुतज़ाद[6] अनासिर[7] इस तरह जमाअ हो गये थे कि इंसान की एक मिसाली[8] तसवीर नज़र आ गई थी।

   इस अज़िमुश्शान[9] मुल्क में, जहाँ पेंतालीस करोड़ इंसान बसते हैं, एक जवाहरलाल ऐसा था, जो सब की ज़बान समझता था, सब के दर्द से आशना[10] था. जिसके यहाँ मज़हब, ज़बान, इलाके, अकीदे[11] का फ़र्क कोई मायना नहीं रखता था, जिसे हिंदुस्तान की पूरी तारिख़ से मुहोब्बत थी. जो सब का था और सब के लिए था। हिंदुस्तान में बड़े फ़ातेह[12], मुदब्बिर[13], दानिशवर[14], अदीब[15] और शायर गुज़रे हैं, मगर ऐसा जामे-हैसियात[16] आदमी हमारी सरज़मीन से कोई नहीं उठा जो बा-एक-वक़्त[17] जंगे आज़ादी का सूरमा[18] और आज़ादी के बाद कोम का मेमारे-आज़म[19], अदीब, मुवर्रिख़[20], दानिशवर, मुदब्बिर, ख़्वाबों का पुजारी और अमल का मर्दे-मैदान[21] हो.
जवाहरलाल नेहरू तो चले गये। उनका जिस्मे-खाकी[22] शोलों की नज्र[23] हो गया। उनकी राख भी आज कुछ हिंदुस्तान के मुख्तलिफ[24] दर्याओं में बहा दी जायेगी ताकि उसके ज़र्रे हिंदुस्तान के खेतों पर बरसें और नई फसल और नई बहार का वसीला[25] वनें। उनका वह हस्ता हुआ चेहरा, यूं आंखों में बसा रहेगा। मगर वह तो होंगे। शख़्स तो चला गया। हाँ उसकी शख़्सियत की अज़मत, ख्वाबों की गरमी, मिज़ाज की नरमी याद आती रहेगी। मगर जवाहरलाल नेहरू हमें क्या कुछ नहीं दे गये। देखिये उंहोने अपने मुताअलुक क्या कहा थाः

यह वह आदमी था जिसने दिलो जान से हिंदुस्तान से और हिंदुस्तान के आवाम से मुहोब्बत की और इसके बदले में उन्हों ने भी उस पर बड़ी महरबानी की और फ़य्याज़ी[26] से उसे अपनी मुहोब्बत दी।

    एक और जगह कहा थाः
इस वक़्त काम करने की ज़रूरत है, इस मेहनत करने की ज़रूरत है, इन सारी कुव्वतों को एकजा करने की ज़रूरत है जो कोम में हैं। हम क्या कर रहे हैं ? हम आगे बढ़ रहे हैं और तरक्की कर रहे हैं। फिर भी जब मैं अपने गिर्दो-पेश[27] नज़र डालता हूँ तो काम का माहोल नहीं देखता। सिर्फ बातें, तंकीद[28], छोटी छोटी टोलियां और एसेही दूसरी बातें हैं। अपनी उमर का ख़याल करके, मुझे थोडिसी बेचैनी होती है, क्योंकि शायद चंद साल ही और जी सकूं, और मेरी तन्हा आरज़ू यह है कि अपनी जिंदगी के ख़त्मे तक मैं ज़्यादा से ज़्यादा मेहनत से काम करूं और जब मैं अपना का कर चुकूं तो फिर मेरी मुताअलुक फिकर करने की कोई ज़रूरत नहीं।

   यानी जवाहरलाल जाते जाते ज़िंदगी की वह खुली किताब दे गये हैं, जिसे हर शख़्स पढ़ सकता है और जिससे अपने लिए बहुत कुछ ले सकता है। उन्होंने अपने आपको हिंदुस्तान की और इंसानियत की खिदमत के लिए लुटा दिया। लुटा दिया और ठिकाने लगा दिया।

   क्या जवाहरलाल नेहरू वाकेई मर गये? नहीं, हरगिज़ नहीं। उनका जिस्मेखाकी ज़रूर शोलों की नज़्र हो गया। वह जिस्मानी तोर पर हमारे दरमियान नहीं हैं, मगर कश्मीर से कावेरी तक और आसाम से काठियावाड तक इस ज़मीन के चप्पे  चप्पे पर उनके कदमों के निशान हैं, इसकी फ़िज़ा[29] में उनकी आवाज़ गुंज रही है। तक़रीबन पचास बरस तक हिंदुस्तान की जिंदगी  के हर मोड़ में वह शरीक[30] रहे। आज हम जो कुछ हैं, उन्हींकी वजे से हैं। वह जिंदा है और जिंदा रहेंगे। हिंदुस्तान को और ऊंचा ले जाने के उनके ख़्वाब जिंदा रहेंगे। जम्हुरियत[31] और गैर मज़हबी रियासत[32] के इस्तिहकाम[33] के लिए हमारी कोशिश हमें उनकी याद दिलायेगी। सोश्यलिज़म की तरफ हर कदम में उनकी ललकार हम सुनते रहेंगे। मुश्तरक[34] तहज़ीब[35] से वफादारी के लिए हमें हर वक़्त उनकी मिसाल को सामने रखना होगा।

   जवाहरलाल नेहरू ने एक इंटरव्यू में हाल में कहा थाः
सच्ची बात तो यह है कि में किसी इंसान को नापसंद नहीं करता।

   आईये हम भी अहद करें कि हम इंसान से हर हाल में, हर रंग में, हर रूप में और हर सूरत में महोब्बत करेंगे। महोब्बत करने वाले को मुहोब्बत मिलती है और नफ़रत करने वाले को नफ़रत।

आले अहमद सुरूर 1 जून, 1964 हमारी ज़बान साप्ताहिक का एक संपादकीय आलेख।






[1] एहतराम- इज़्ज़त, सम्मान احترام
[2] मशरिकी- पूरबी, प्राच्य مشرقی
[3] मग़रिबी- पश्चिमी, पाश्चात्य مغربی
[4] आलमी- अंतराष्ट्रीय  عالمی
[5] ज़हन- दिमाग ذہن
[6] मुतज़ाद- विपरीत, विरोधी متضاد
[7] अनासिर- तत्वों  عناصر
[8] मिसाली- आदर्श  مثالی
[9] अज़िमुश्शान- महान  عظیم الشان
[10] आशना- परिचित آشنا
[11] अकीदे- आस्था, श्रद्धा ‏عقیدہ
[12] फ़ातेह- विजयी, विजेता  فاتح
[13] मुदब्बिर- रणनीतिग्न, बुद्धिजिवी مدبّر
[14] दानिश्वर- स्कालर, बुद्धिजिवी دانش ور
[15] अदीब- साहित्यकार  ادیب
[16] जामे-हैसियात- बहुमुखी प्रतिमा  جامع حیشیات
[17] बा-एक-वक़्त- इस समय में  بہ یک وقت
[18] सूरमा- बहादूर سورما
[19] मेमारे-आज़म-  महान निर्मता  معماراعظم
[20] मुवर्रिख़- इतिहासकार مورّخ
[21] मर्दे-मेदान- नायक, बहादुर مردمیدان
[22] जिस्मे-खाकी मिट्टी का शरीर  جسم خاکی
[23] नज्र होना अर्जित होना  نزر ہونا
[24] मुख़्तलिफ़ अलग, विभिन्न  مختلف
[25] वसीला माध्यम, कारण  وسیلہ
[26] फ़य्याज़ी उदारता, खुलापन  فیاضی
[27] गिर्दो-पेश आस पास  گردوپیش
[28] तंकीद - आलोचना   تنقید
[29] फ़िज़ा - वातावरण   فضا
[30] शरीक - सम्मिलित   شریک
[31] जम्हुरियत लोकतंत्र  جمہوریت
[32] गैर मज़हवी रियासत धर्मनिरपेक्श राज्य غیر مزہبی ریاست 
[33] इस्तिहकाम - स्थिरता   استحکام
[34] मुश्तरक साझा  مشترک
[35] तहज़ीब - सभ्यता  تہزیب

सोमवार, 28 जुलाई 2014

अमन के सफ़ीर



पाकिस्तान और भारत के तलबा अमन के सफीर है
साईकल डिप्लोमेसी के साथ दोनों मुल्कों का जशने आज़ादी मनाएंगे
अमन रेली के कंविनियर प्रवीन कुमार सिंग से गुफ़्तगु

अमीर लतीफ, लाहोर,
महात्मा गांधी का मशहूर कोल है कि जिस दिन इस दुनिया में प्यार की ताक़त, ताक़त से प्यार करने वालों से ज़्यादा हो जाएगी, उस दिन दुनिया में अमन क़ाईम हो जायेगा. भारत के बानी रहनुमा[1] का यह ही वह तारिख़ी जुमला[2] है कि जिसने देहली युनिवरसिटी के तलबा को यह सोच बख़्शी कि क्यों न अमन के सफ़ीर[3] बनकर इस ख़ित्ते[4] में प्यार की ताक़त को बढाया जाय। अमुमन[5] होता यह है कि नई नसल[6] तक उनके आबाओ अजदाद[7] की तारीख़ इस तरह नहीं पहुँच पाती जो हकाईक[8] पर बनी हो, इस लिए बाअज़ ओकात[9] हकाईक के मतलाशी[10] बाशऊर[11] नोजवान मतज़ाद[12] किस्से कहानियों के बजाए इस तारीख़ को दुनिया के सामने हकिकी सुरत में पेश करने का अहद[13] कर बैठे हैं। पाकिस्तान और भारत कैसे माअरज़[14]  वजुद[15] में आए? यहां कि बाशिंदों ने किस से आज़ादी हासिल की? और कैसे यह ख़ता सरहदों में तक़सीम[16] हुआ? यह हैं वह सवालात जो पाक भारत नौजवानों के अज़हान[17] के तारीख़ के झरोकों में झांकने से सही तशरीह[18] करने के लिए दोनों मुमालिक[19] के क़याम[20] के 66 साल गुज़रने के बाद देहली युनिवरसिटी के अमन पसंद तलबा ने ठानी है कि वह सरहद के दोनों अतराफ[21] अवाम में दुरियां ख़तम करके दुशमनी के फ़रज़ी क़िस्सों पर मुशतमिल[22] तारीख़ को इसकी असल रुह में बयान करेंगे। गुज़िश्ता[23] कई माह से दहली युनिवरसिटी के तलबा की जानिब[24] से पाकिस्तान और भारत के दरमियान दोस्ताना कई ताअलुकात क़ाईम करने की तहरीक[25] ज़ोर पकड़ चुकी है। अमन पसंद तलबा के इस ग्रुप का कहना है सरहद से दोनों जानिब जवान नसल को यह बताया जाता है कि 66 बरस कबल[26] हम ने एक दुसरे से आज़ादी हासिल करने के लिए जगं लड़ी, जिसके नतीजे में यह दोनों मुमालिक मआरिज़ वजुद में आए, लेकिन यह गलत गुमान[27] है। इन नौजवानों का कहना है कि 1947 में इस ख़ित्ते के बासियों[28] ने बरतान्वी सामराज के ख़िलाफ़ जंगे आज़ादी लड़ी। पाक हिंद के रहने वाले चाहे वह हिंदु थे या मुसलीम, उस वक़्त सब का मक़सद ग़ुलामी से निजात था, इसी लिए यह किसी कोम या मज़हब की जंग न थी बल्कि इस ख़ते पर काबिज़[29] अंग्रेज़ हुकमरानों[30] से आज़ादी की जंग थी। आज सरहद के दोनों जानिब नई नसल को एक दुसरे के खिलाफ नफ़रत अंगेज़ किस्से सुना कर भड़काया जाता है जो कि दोस्त नहीं है। देहली युनिवरसिटी के इन तलबा ने पाकिस्तान और भारत के अवाम को क़रीब लाने केलिए “India-Pakistan Peace Cycle Rally के नाम से मुहिम[31] का आगाज़[32] किया है। फाकिस्तान और भारत के कोमी दिन बालतरतीब[33] 14 और 15 अगस्त को इनकी जानिब से साईकल रेली का इनअकाद[34] किया जाए जाए गा जो कि देहली युनिवरसिटी से ले कर वाहगा तक अमन मार्च होगा। इस अमन मिशन के कंविनियर प्रवीन कुमार सिंग ने ख़ुसुसी[35] तोर पर जंग से गुफतगु[36] करते हुए बताया कि इस रेली में शिरकत[37] के लिए तमाम बड़े शहरों में केम्पैन चलाई जा रही है। प्रवीन का कहना है कि हम लोगों में पाकिस्तान के बारे में मुंफी[38] राय ख़तम कर ने के लिए अमन और दोस्ती पर बनी म्युज़िक और स्ट्रिट शोज़ का अहतमाम[39] कर रहे हैं। इनका कहना था कि तलबा मुखतलिफ़ शहरों की बड़ी शाहिराहों[40] के मरकज़ी मुक़ामात[41] पर इकठे होते हैं और पाको हिंद के तारीख़ी किस्सों से माख़ुज़[42] ड्रामे पेश कर के लोगों की तवज्जू[43] अपनी जानिब राग़िब[44] करते हैं। हमने दोनों मुमालिक के माबीन[45] भाईचारे और अमन केलिए नग़मे[46] तरतीब[47] दे रखे हैं, जिस पर हमारे आर्ट ग्रुप के साथ साथ वहां पर मौजुद शाइकीन भी परफारम करते हैं। इसे तमाम लोग जो इस अमन रेली शिर्कत करना चाहते हैं हम इनकी रजिस्ट्रेशन करते हैं और इन्हें अपने मक़सद से आगाह[48] करते हैं। प्रवीन ने बताया कि हम शिरका[49] को भी अपनी राय पेश करने का मोका देते हैं, जिसके बाइस[50] कई बुज़ुर्ग शहरी मजमुआ[51] को भारत की तारीख़ से आगाह करते हैं, जब्कि कुछ पाकिस्तान में अब भी मौजुद अपने रिश्तेदारों से मुलाकात की ख्वाहिश का इज़हार करते हैं। कन्वेयर ने बताया कि इन्होंने अपनी मदद आपके तहत केम्पैन में शामिल तलबा के लिए अमन पैग़ामात पर मुबनी[52] युनिफारम का एहतमाम[53] भी कर रखा है, जब्कि गरम मौसम के पेशेनज़र शिरका केलिए मशरुबात[54] का भी इंताज़ाम किया जाता है। इनका कहना था कि हम साईकल रेली के ज़रिए यह बताना चाहते हैं कि इस ख़ित्ते में पाकिस्तान और भारत की हेशियत साईकल के दो पहियों की तरह है, इसलिए दोनो का इकट्ठे रहना लाज़िम है।
प्रवीन के दिगर साथियों ने बताया कि हमने गुज़िशता माह इस रेली के हवाले[55] से क़रारदार[56] पेश करने के लिए वज़िर अज़म हाऊस की जानिब साइकल रेली निकाली थी, लेकिन पुलिस ने सेक्युरिटी वजुहात की बिना पर आगे न जाने दिया। इनका कहना था कि लोगों की जानिब से भारती वज़िर आज़म नरेंद्र मोदी को कुछ इंतशार[57] पसंद अनासर[58] की जानिब से पाकिस्तान के बारे में सख़्त रवैया रख़ने वाली शख़सियत के तोर पर पेश किया जाता है, हालांकि ऐसा बिलकुल नहीं है। इन्होंने दोनो मुमालिक में अमन के मक़सद के लिए मुनाअक़िद की जाने वाली इस साईकल रेस के लिए गुज़िश्ता साल नरेंद्र मोदी की जानिब से मोसूल[59] होने वाले नेक ख़्वाहिशात पर बनी पैग़ाम की कापी देखाते हुए बताया कि यह ख़त मौजुदा भारती वज़ीर आज़म की जानिब से इस वक़्त भेजा गया था कि जब वह वज़ीरे आला गुजरात थे। इन्होंने बताया कि बहेशियत वज़ीरे अज़म वह अब भी इस अमन केम्पैन के हिमायती हैं और इसी लिए बिना किसी ख़ोफ व ख़तर[60] तमाम एलाकों में इस हवाले से प्रोग्राम्ज़ मुनअक़िद कर रहे हैं।
जंग ग्रुप और टाईमज़ ओफ इंडिया की मशतरका[61] अमन कावश[62] अमन की आशा को खेराज[63] तहसीन[64] पेश करते हुए प्रवीन का कहना था कि हमारी रेली भी इसी अमन की आशा का हिस्सा है। इन्होंने बताया कि भारत में टाईमज़ ओफ इंडिया समेत दीगर[65] मिडिया गरोपश[66] भी हमारी इन कोशिशों को सरहा रहे हैं। इन्होंने कहा कि दोनों मुमालिक के यह बड़े मिडीया गरोपश पाक भारत हकुमती  युवानों तक हम जैसे लोगों कि जो इस ख़ित्ते में अमन और दोस्ती का माहोल काईम करना चाहते हैं, की आवाज़ पहोंचा रहे हैं। कनवेनियर का कहना है आप लोग हमारे नज़रियाती[67] शिराकतदार[68] हैं, जो यहाँ के अवाम को नफ़रत से पाक माहोल में जिने का सबक देते हैं। ग्रुप के मुसलिम रुकन[69] निअमान अहमद का कहना था कि पाकिस्तान से ताअलुक़ रखने वाली मुख़तलिफ युनिवरसिटीज़ के नवजानों के ग्रुप गाहे बगाहे[70] अमन का पैग़ाम ले कर भारत आते रहते हैं और अब हमारी दोनों मुल्कों की हकुमतों से अपील है कि वह भी सरकारी तोर पर ऐसी कोशिश की होसला अफ़ज़ाई[71] करे। उनका कहना था कि जंग ग्रुप के फोरम से हम अपने फाकिस्तानी नौजवान दोस्तों तक पैग़ाम पहुंचाना चाहते हैं कि वह भी इस रेली में भरपूर शिरकत करें ताकि भारत से अमन का पैग़ाम ले कर वाहगा पहुंचने वाले अफराद को यकीन हो सके कि अमन दोस्ती की शमअईन[72] सरहद के दोनो अतराफ रोशन रहें। अमन मिशन की खातुन रकन पूजा का कहना था कि इस कम्पैन में भारती लड़कियां भी मर्दों के शाना बिशाना[73] खड़ी  हैं। क्युंकि हन अमन की ख़ातिर हर तफ़रीक़[74] ख़तम करना चाहते हैं। पूजा का कहना था कि हम अकसर पाकिस्तानी दोस्तों से सोशल नेटवर्क किसी के ज़रिये राबते में रहते हैं और दोनों मुमालिक के तआलीमी निज़ाम समेट दीगर शुबा जात[75] का तज़करा[76] करते रहते हैं। लेकिन क्या ही अच्छा हो कि हम बिना किसी रोक टोक सरहद के आरपार खुद अपनी आंखों से यह सब देख पाएं। पाकिस्तानी लड़कियों के लिए पूजा ने अपना पैग़ाम देते हुए ख़्वाहिश का इज़हार किया कि हमारी ख़्वाहिश है कि जब हम वाहगा पहुंचे तो वहां हमारी फाकिस्तानी बहनों हमारा इस्तकबाल इसी जोशो जज़बे के साथ करें कि जिस जज़बे के तहत हम सेकड़ों किलोमीटर का फेसला तय करके  उन तक पहुंचेंगे, क्युंकि बेशक हमारा खुन का रिश्ता न सही, लेकिन हमसाईगी[77] और दिल का रिश्ता तो है।







[1] बानी रहनुमा - संस्थापक नेता  بانی رہنما
[2] तारिख़ी जुमला - ऐतिहासिक वाक्यांश تاریخی جملہ
[3] सफीर - राजदूत  سفیر
[4] ख़ित्ते – क्षेत्र خطے
[5] अमुमन – आमतौर  عموما    
[6] नई नसल – नयी पीढ़ी نیی نسل
[7] आबाओ अजदाद - पूर्वजों آبا و اجداد
[8] हकाईक – तथ्य  حقایق
[9] बाअज़ ओकात – कभी कभी بعض اوقات
[10] मतलाशी – खोजकर्ता متلاشی
[11] बाशऊर – जागरुक باشعور
[12] मतज़ाद – विराधाभासी متضاد
[13] अहद – संकल्प عہد
[14] माअरज़ – जन्मمعرض
[15] वजूद – अस्तित्व  وجود
[16] तक़सीम – वितरण تقسیم
[17] अज़हान – दिमाग اذہان
[18] तशरीह – व्याख्या تشریح
[19] मुमालिक – देशों ممالک
[20] कयाम – स्थापना قیام
[21] अतराफ़ – पक्षों اطراف
[22] मुशतमिल – शामिल مشتمل
[23] गुज़िश्ता – पिछले گزشتہ
[24] जानिब – ओर جانب
[25] तहरीक – आंदोलन تحریک
[26] कबल – पहले قبل
[27] गुमान – विचार speculations گمان
[28] बासियों – रहने वालों باسیوں
[29] काबिज़ – कबज़ा قابض
[30] हुकमरानों – शासकों حکمرانوں
[31] मुहिम – अभियान مہم
[32] आगाज़ – शुरुआत آغاز
[33] बालतरतीब – क्रमशः, respectively بالترتیب
[34] इनअकाद – आयोजन, انعقاد
[35] ख़ुसुसी – विषेश خصوصی
[36] गुफतगु – बातचीत گفتگو
[37] शिरकत – भाग شرکت
[38] मुंफी – नकारात्मक منفی
[39] अगतमाम – आयोजन اہتمام
[40] शाहिराहों – राजमार्गों شاہراہوں
[41] मुक़ामात – स्थानों مقامات
[42] माख़ुज़ – आधारित ماخوذ
[43] तवज्जू – ध्यान توجہ
[44] राग़िब – आकर्षित راغب
[45] माबीन – बीच مابین
[46] नग़मे – गाने نغمے
[47] तरतीब – विन्यास, रचना, configure  ترتیب
[48] आगाह – पता, informed آگاہ
[49] शिरका – प्रतिभागियों شرکا‏‏ء
[50] बाइस – कारण باعث
[51] मजमुआ – भीड़ مجمع
[52] मुबनी – आधारित مبنی
[53] एहतमाम – आयोजन اہتمام
[54] मशरुबात – पेयمشروبات  
[55] हवाले – सम्बंध حوالے
[56] करारदार – प्रस्ताव کراردار
[57] इंतशार – अराजकता انتشار
[58] अनासर – तत्वों عناصر
[59] मोसूल – प्राप्त موصول
[60] ख़ोफ व ख़तर – भय और जोखिम خوف و خطر
[61] मशतरका – छोटी مشترکہ
[62] कावश – कार्य کاوش
[63] ख़ेराज – श्रद्धांजलि خراج
[64] तहसीन – प्रशंसा (tribute) تحسین
[65] दीगर – अन्य دیگر
[66] गरोपश – गट, groups گروپش
[67] नज़रयाती – सैद्धांतिक نظریاتی
[68] शिराकतदार – भागीदारों شراکت دار
[69] रुकन – सदस्य رکن
[70] गाहे बगाहे – एक बार, दो बार گاہے بگاہے
[71] होसला अफ़ज़ाई – प्रेरित حوصلہ افزائی
[72] शमआईं – मीनबत्ती, candles شمعیں
[73] शाना बिशाना – शाना मिलाकर, alongside شانہ بشانہ
[74] तफ़रीक़ – भेदभाव تفریق
[75] शोबा जात - विभाग श्रेणियाँ, Sectors شعبہ جات
[76] तज़करा – चर्चा تذکرہ
[77] हमसाईगी – पडोशी ہمسائیگی

Special Comments: One reason for the Partition was Urdu. Imposition of Hindi as national language made us lose Lahore, lose importance of our own languages, let sway of English to come in with vengeance. We should have opted for all inclusive, multi-view society. Our leaders have kept harping on Unity. They have never actually liked India as such.