बुधवार, 16 अप्रैल 2014

अमन का पैगाम आम की अपील


آ‎‎ئندہ حکومت سے امن کا پیغام عام کرنے کی اپیل
आइंदा हकुमत से अमन का पैग़ाम आम करने की अपील
नई दल्ली, 17 अप्रील (सय्यद अनेईन अली हक)

पार्लियामानी इंतखा़ब[1] 2014 से कबल[2] सभी संजीदा[3] लोग और गैर-सियासी तंज़ीमों[4] सामने आ रही हैं और उन सब का मानना है कि एक ऐसी हकुमत बरसरे-इक़्तिदार[5]आए जो हिंदुस्तानी जम्हुरियत[6] की पासदारी[7] करते हुए मुल्क को तरक़्की की राह पर गामज़न[8] कराए। मुल्क में सभी मज़हब की तरक़्की ही हिंदुस्तान की तरक़्की है। आज दिल्ली युनिवरसिटी आर्ट फेकलटी के मैन गेट पर तलबा[9] ने आज एक मीटिंग मुनअक़िद[10] की और इन लोगों ने हिंदुस्तान के मुस्तक़बिल[11] को बेहतर बनाने केलिए कुछ मशवरे दिए। इन तलबा का कहना है कि हम सभी तालिबे-इल्म[12] सियासी पार्टीयों से अपील करते हैं कि बरसरे-इक़्तिदार जो भी पार्टी आए मुल्क के तैं[13]संजीदा हो और अमन व भाईचारगी क़ाईम रखते हुए मल्क को तरक़्की की राहों तक ले जाए और नई हकुमत की तशकील[14]के बाद वह युरपी युनियन की लाइंनों पर कंफेडरेशन के तोर पर मुतहिद[15] किया जाए ताकि हमारी बरसग़ीर के मुमालिक[16] मुतहीद हो कर तरक़्की करें। यह इंतख़ाब नई नसल के जमहुरियत पसंद नौजवानों के मुस्तक़बिल और इनके ख़्वाबों का भी फैसला करेगा। इतेहाद व एतमाद[17] और दोस्ताना तालुक़ात नहीं होने की वजह से हिंदुस्तान और पाकिस्तान को इसतेमाल करते हुए इनकी गुरबत[18] का फाईदा उठाया जा रहा है। यह दोनों मुल्क अपने हिफाज़ती इंतज़ामात[19] पर बड़ी रक़म ख़र्च करते हैं जब कि यह रक़म ग़ुरबत और फ़लाह व बहुबूद[20] में ख़र्च की जा सकती है। हमें मुतहिद होना होगा तभी दोनों मुमालिक[21] तरक़्की कर सकते हैं। एकम जून 2013 को दिल्ली युनिवर्सिटी के कुछ तालबा ने साइकल के ज़रिये कन्या कुमारी से अमनो-अमान[22] की ख़ातिर सफर शुरू किया था जो इसलामाबाद तक केलिए था। लेकिन कुछ वजुहात[23] के सबब पंजाब सरहद पर इख़्तिताम पज़ीर[24] हुवा था। 15 अगस्त 2013 को यह सिलसिला ख़तम हुआ था, चार हज़ार किलोमिटर, का सफर 75 दिनों में तय कर के अमन का पैग़ाम आम करने की कोशिश की गयी थी। साईकल के ज़रिये अमन का पैग़ाम आम करने का इरादा दोबारा तलबा ने किया है। हमारा मुल्क तरक़्की नहीं कर पा रहा है जिसकी वाहिद वजह फ़रका वराना फ़सादात[25] हैं। हमें चाहिए कि मुज़फरनगर जैसे फसादात पेश न आयें।
प्रवीन सिंग (एम. ए., शोबा[26] बुधमत) और लिंडा लवाईज़ (एम.फिल., बशरयात[27]) वगैरा के अलावा काफी तलबा मौजुद थे।





[1] पार्लियामानी इंतख़ाबः लोकसभा चुनाव پارلیئمانی انتخاب                              
[2] कबलः पहेले قبل                                                                             
[3] संजीदाः घंभीरسنجیدہ                                                                       
[4] गैर सियासी तंज़ीमः गैर राजनैतीक संघटन                  ‏غیر سیاسی تنظیم  
[5] बरसरे-इक़्तिदारः सत्ता परبرسر اقتدار                                                     
[6] हिंदुस्तानी जम्हुरियतः भारतीय गणतंत्र                 ہندستانی جمہوریت       
[7] पासदारीः समर्थन پاسداری                                                                   
[8] गामज़नः अग्रेसरگامزن                                                                      
[9] तलबाः छात्रों     طلبا ء                                                                     
[10] मुनअकिदः आयाजितمنعقد                                                                  
[11] मुस्तकबिलः भविष्य        مستقبل                                                       
[12] तालिबे इल्मः विद्यार्थी طالب علم                                                             
[13] तैं के प्रति    تیئن                                                                         
[14] तशकीलः निर्माण      تشکیل                                                              
[15] मुतहिदः एकजुत     متحد                                                                  
[16] बरसग़ीर के मुमालिकः उपमहाद्वीप के देशोंبرصغیر کے ممالک                        
[17] इतेहाद व एतमादः एकता और विश्वास                 اتحاد و اعتماد                
[18] गुरबतः गरीबी     غربت                                                                  
[19] हिफाज़ती इंतज़ामातः सुरक्षा व्यवस्था       حفاظتی انتظامات                            
[20] गुरबक और फ़लाह व बहुबूदः गरीबी और कल्याण         غربت اور فلاح و بہبود
[21] मुमालिकः देशोंممالک                                                                      
[22] अमनो अमानः शांति امن و امان                                                               [23] वज़ुहातः कारणोंوجوہات                                                                   
[24] इख़्तिताम पज़ीरः अंत, ख़तम    اختتام پزیر                                           
[25] फरका वराना फ़सादातः सांप्रदायिक दंगों          فرقہ ورانہ فسادات                   
[26] शोबाः विभागشعبہ                                                                            
[27] बशतरयातः  एंथ्रोपोलॉजीبشریات                                                                                                 

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मेरा इज़हारे ख़यालः   युरोपियन युनियन का खयाल में ही तो सारे मामले का हल दरपेश है. लेकिन यह बात कोई ज़िकर नहीं है कि दोनो पाकिस्तान और हिंदुस्तान को राम राम ठोक ने का वक़्त चला आएगा। असल में हिंदुस्तान पाकिस्तान बरकरार रखने केलिए ही तो है मुज़फरनगर के दंगे फ़साद।  अगर हम मज़हब को कम और ज़बान को ज़्यादा अहेमियत देना पसंद करने लगेंगे जैसेकि युरोपियन युनियन में है - तो फिर यह भी समझने लगेंगे हम कितने बेशरम है कि मज़हब का खयाल रखकर हिंदुस्तान को एक करके रखा हुआ है और एक छोटे से श्रीलंके से एक या दो भाषी मुल्क के सामने पुर ज़ोर तैयारी के साथ (क्रिकेट) खेलते है (और हार भी जाते है) और कुछ ग़लत होने का एहसास भी किसी में नहीं आता है। दरअसल बात यह है कि जो सोचने वाले थे वह 1947 में अपने वतन चले गये. और गु़लामों से क्या उम्मिद की जा सकती है।
posted on 14-04-2014, 12 midnight (Face Book)


The idea behind this blog is to tag on to some original Urdu literary work that I have come across in the wake of my learning Urdu from School books, NCPUL reading material, Urdu new papers and like.  It is primarily for those who have lost sense of love and appreciation of its ornamental script and know only the Devnagari script.



मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

नामदेव माली نام دیو مالی


نام دیو مالی
नामदेव माली

नामदेव औरंगाबाद के एक बाग में माली था। ज़ात का धेड था जो बहुत नीच ख़याल की ज़ाती है।

वह बाग में निगरानी में था। मेरे रहने का मकान भी बाग ही में था। मैंने अपने मकान के सामने चमन बनाने का काम नामदेव के सुपुर्द किया। मैं अंदर कमरे में काम करता था। मेरी मेज़ के सामने बड़ी सी खिड़की थी। उसमें से चमन साफ नज़र आता था। लिखते लिखते कभी नज़र उठाकर देखता तो नामदेव को काम में मसरूफ पाता। बाअज़1] दफा उसकी हरकतें देखकर बहुत ताअजुब होता। मसलन क्या देखता हूं कि नामदेव एक पौदे के सामने बैठा उसका थाला साफ कर रहा है। थाला साफ करके होज़2] से पानी लिया और आहिस्ता आहिस्ता डालना शुरू किया और हर रुख से पौदे को मुड़ मुड़ कर देखा। फिर पिछे हट कर उसे देखने लगा। देखता जाता था और मुस्कराता और खूश होता था। यह देखकर मुझे हैरत भी होती और खूशी भी।

अब मुझे उससे दिलचस्पी होने लगी। यहां तक कि बक़्त अपना काम छोड़कर उसे देखा करता। मगर उसे कुछ ख़बर न होती कि कोई देख रहा है। उसे कोई औलाद न थी। वह अपने पौदों और पेड़ों को अपनी औलाद समझता था। वह एक एक पैदे के पास बैठता. उनको प्यार करता, झुक झुक रे देखता और ऐसा माअलूम होता गोया उनसे चुपके चुपके बातें कर रहा है। कभी किसी पौदे में इत्तफाक से कीड़ा लग जाता तो उसे बड़ा फिकर होता। उसके लगाए हुए पौदे हमेशा परवान चढे3]। वह भी बहुत साफ सुतरा रहता था और ऐसा ही अपने चमन को भी रखता।

एक साल बारिश बहुत कम हुई। कुंओं में पानी बराए-नाम4] रह गया। बहुत से पौदे और पेड़ो ज़ाए हो गये5]। लेकिन नामदेव का चमन हरा भरा था। वह दूर दूर से एक एक घडा पानी सर पर उठाके लाता और पौदे को सिंचता। उस पर मैंने उसे इनाम देना चाहा तो उसने लेने से इंकार कर दिया। शायद उसका कहना ठीक था कि अपने बचों के पालने पोसने में कोई इनाम का मुस्तहिक6] नहीं।

जब हुजुर निज़ाम को औरंगाबाद में बाग लगाने का ख़याल हुआ तो नामदेव को भी शाही बाग में बुलाया गया। वहां बीसियों माली थे और माली कैसे कैसे . टोकियो से, जापानी, तेहरान से हरानी और शाम7] से शामी आए थे। यहां भी नामदेव का रंग था। उसने बाग़बानी की ताअलीम नहीं पाई थी। लेकीन उसे काम की धुन थी और इसीमें उसकी जीत थी। शाही बाग में भी उसीका काम सब से अच्छा रहा। दूसरे माली लड़ते झगडते, शराब पीते, यह न किसी से लड़ता झगडता, न शराब पीता।

एक दिन न माअनूम क्या बात हुई कि शहद की मक्खीयों की यूरीश8] हुई। सब माली भाग कर छुप गये। नामदेव को खबर भी न हुई कि क्या हो रहा है। वह अपने काम में लगा रहा। यहां तक कि मक्खियों ने इतना काटा कि बे-दम हो गया। आखिर इसी में जान दे दी।

वह बहुत सादा मिज़ाज और भोला भाला था। छोटे बड़े हर एक से झुक के मिलता। ग़रीब था और तंख्वा भी कम थी। इस पर भी अपने भाईयों की मदद करता था। काम से इश्क था और आख़िर में काम करते करते ही इस दुनिया से रुख़सत हो गया।

जब कभी मुझे नामदेव का ख़याल आता है तो मैं सोचता हूं कि नेकी क्या है और बड़ा आदमी किसे कहते है। हर शख़्स में कुदरत ने कोई न कोई सलाहियत9] रखी है। इस सलाहियत को दर्जाए-कमाल10] तक पहुंचाने में सारी ने की और बढ़ाई है। दर्जाए-कमाल तक न कभी को पहुंचा है, न पहुंच सकता है। लेकिन वहं तक पहुंचने की कोशिश ही में इंसान इंसान बनता है। अगर नेकी और बढ़ाई का यह मियार11] है तो नामदेव नेक भी था और बड़ा भी।

मौलवी अबदुल हक 1870- 1961








1] बाअज़ : कुछبعض                                                     
2] होज़ : टंकीحوض                                                      
3] परवान चढे : बढ़नाپروان چڑھے                               
4] बराए-नाम : थोडा, नाम के लिएبراۓ نام               
5] ज़ाए हो जाना : मुर्जाना, ख़तम हो जानाضا‏‏‏ئع     
6] मुस्तहिक : योग्य, लायकمستحق                            
7] शाम : सीरियाشام                                                 
8] यूरीश : हमला, आक्रमण, धावाیورش                   
9] सलाहियत  : योग्यताصلاحیت                               
10] दर्जाए-कमाल : सम्पूर्णताدرجہء کمال                  
11] मियार : standardمعیار